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भटकती आत्मा भाग - 32




भटकती आत्मा भाग –32

गुमला एक छोटा सा बाजार के रूप में विकसित था। एक चौक था,जिसे सभी चट्टी कहते कहते थे,उसी के आसपास पूरा शहर बसा था। उसके मुख्य मार्ग पर एक ओर के विस्तृत मैदान में शामियाना लगाया गया था। दर्शकों के बैठने के लिए दरी की व्यवस्था की गई थी। सामान्य अनपढ़ भोला-भाला ग्रामीण भी रामायण की कथा जानता था | फिर क्यों नहीं लोगों के मन में रामलीला देखने की उत्कंठा होती | हजारों दर्शक मैदान में जमा हो गए थे | मात्र चार पैसे देकर रामलीला देखना ! इतना सस्ता मनोरंजन था! स्वयंसेवको के दल ने लोगों को व्यवस्थित किया,फिर रामलीला शांतिपूर्वक खेला जाने लगा। रामलीला दल के कलाकार उपस्थित दर्शकों की वाहवाही लूट रहे थे हनुमान के अभिनय को सबने सराहा उसके अनुरूप ही तो मनकू ने शरीर भी बलिष्ठ पाया था। मनगढ़ंत संवादों के द्वारा लोगों का भरपूर मनोरंजन हुआ। शायद वास्तविक संवाद भी उतने मनोरंजक नहीं होते जितना मनकू ने बिना परिश्रम के ही कर दिखाया था। दो दिनों तक लगातार रात्रि में रामलीला होता रहा,फिर भी अधूरा ही रहा। मनकू जाने के लिए उतावला था,फिर भी विशेष आग्रह करने पर उसको रुकना पड़ा। तीसरे दिन किसी तरह रामलीला समाप्त हुई। मनकू अब स्वतंत्र था। उसको कुछ व्यक्तिगत उपहार भी मिले थे,जिनका वितरण रामलीला के सदस्यों में नहीं हुआ | फिर उसका पारिश्रमिक भी उसको मिला | मनकू माँझी तो लेना नहीं चाहता था फिर भी रामलीला के आयोजक के आग्रह पर लेना पड़ा।
आज चौथा दिन था। वह भोजन तो कर ही चुका था। एक व्यक्ति से पूछने पर उसे ज्ञात हुआ कि अभी दिन के दस ही बजे हैं,रामलीला दल रांची जाने के लिए गाड़ी की व्यवस्था करने में लगा था। मनकू का उनसे अब कोई संबंध नहीं रहा,क्योंकि उसका मार्ग उनसे भिन्न था। उसका उद्देश्य मात्र नेतरहाट जाने का था। उसके गांव में पता नहीं इतने दिनों में क्या परिवर्तन हुआ होगा। उसका परिवार कैसा होगा,जानकी कैसी होगी, मैगनोलिया किस प्रकार रह रही होगी ?
  यह सारे प्रश्न उसके मानस पटल पर अंकित हो रहे थे | वह थोड़ा समय भी व्यर्थ में गंवाना नहीं चाहता था,पैदल ही तो उसको वहां तक जाना होगा | वहां जाने के लिए उसे कोई साधन नहीं मिलेगा,गाड़ी तो बड़े लोगों के पास ही है | यदि उसके गांव के आस-पास के कोई यहां बाजार आया रहता तो उसकी बैलगाड़ी से वह जा भी सकता था,परन्तु उसे ऐसा कोई नहीं दिखा जो उसके गांव की ओर जा रहा हो,या नेतरहाट की दिशा में भी जा रहा हो | एक पैकेट मिठाई उसको झोले में रखा,रामलीला में मिले उपहार भी उसने उस झोला में ही डाला हुआ था। कोई भी नहीं जानता था कि यही वह शख्स है,जो दो दिनों तक हनुमान बनता रहा था,कैसी यह दुनिया है !
  मनुष्य को जीवन में क्या-क्या नहीं करना पड़ता है। स्वयं मनकू मौत के मुख से निकल कर आया था। कई संकटों को झेलता हुआ वह यहां तक पहुंचा था। उसको रह-रहकर जमुना बाड़ी की याद भी आ रही थी,कुछ ही दिनों में कितना मोह हो गया था उसको उस बस्ती के प्रति। यही मोह तो मनुष्य को संसार में जीवित रहने के लिए बाध्य करता है,विपत्ति को झेलने की प्रेरणा यही मोह मनुष्य को प्रदान करता है।
  हाथ में झोला लटकाए वह चल पड़ा था अपने गंतव्य स्थल की ओर। तरह-तरह की यादें मन को कभी व्यथित और कभी प्रफुल्लित बना रही थीं। हठात उसके मन में एक विचार कौंध गया,मिस्टर जॉनसन तो उसको देखते ही गोली से भून देगा | वह अभी तो उसको मरा हुआ समझ रहा है, गांव के लोग भी उसको भूल गये होंगे,वे लोग भी उसे मरा जानकर दिल पर पत्थर रख लिए होंगे | मिस्टर जॉनसन ने उसको मारने के लिए ही तो गुंडा बुला लिया था, हो सकता है उसमें कलेक्टर साहब का भी हाथ हो। अब शायद मैगनोलिया भी उसको मृत समझ रही होगी,लेकिन नहीं ऐसा समझने पर वह आत्महत्या कर लेती -  अभी तक जिंदा नहीं रहती। हो सकता है अपने पिता के मोह में पड़कर परिस्थिति से समझौता कर ली होगी। मैगनोलिया की याद ने उसके सूख चुके प्रेम की ज्वालामुखी को भड़का दिया। एक टीस सा उठा दिल में,फिर कदम और भी तेजी से आगे बढ़ने लगे।
  संध्या ने दिवस से गले मिलकर उसको विदा किया, फिर तो उसके मटमैले आंचल चारों ओर फैलने लगे। चिड़िया अपने घोंसलों की ओर लौटते हुए खुशी भरे गान गा रही थी। सूर्य अंतिम सांस लेकर किसी कंदरा में जा छिपा। 
  मनकू माँझी को प्यास लगी,इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई,मार्ग पर आगे एक और जल का स्रोत था | वह जल्दी-जल्दी उस जलाशय के समीप पहुंचा,अपने थैले को टटोला,क्योंकि उसमें एक जल पात्र था जिसको धन्नो ने आग्रह पूर्वक उसमें रख दिया था | कहा था -  "भैया रास्ते में पानी पीने के लिए काम आएगा"|
परंतु थैले में टटोलने पर नहीं मिला | उसने एक चट्टान के निकट जाकर थैले को उलट दिया,लेकिन यह क्या  - यह तो रामलीला पार्टी वालों का थैला था। उसका थैला तो रामलीला पार्टी वालों से बदल गया था। इस थैले में श्रृंगार प्रसाधन के सामान भरे थे। उसका उपहार भी इसमें नहीं मिला,जल्दी-जल्दी में वह अपना थैला लेने के बदले उन लोगों का थैला ले आया था। इसमें विश्वामित्र बनने के लिए गेरुआ वस्त्र,चर्म और दाढ़ी मूछ तथा और भी कई प्रसाधन की सामग्रियां थीं। वह अपने उतावलेपन पर खीझ उठा। उसने सोचा था कि उपहारों को जानकी को दे देगा,लेकिन मन की बात मन ही में रह गई थी। अचानक मन में एक अनोखा विचार तैर गया,क्यों न वह उन प्रसाधनों की सहायता से विश्वामित्र बन जाए। विश्वामित्र यानी साधु इस रूप में बस्ती जाने पर कोई उसको नहीं पहचानेगा | फिर कलेक्टर साहब या मिस्टर जॉनसन के द्वारा देखे जाने का भय भी नहीं रहेगा | ऐसे अपने वास्तविक रूप में अपने गांव या उसके आसपास तो उनके द्वारा देख लेने पर फिर खतरे में घिर जाएगा वह, क्योंकि वे लोग तो उसके प्राणों के भूखे हो जाएंगे | अपने षड्यंत्र को असफल समझ लेंगे -  मनकू माँझी को जिंदा देखकर | अच्छा हुआ जो यह प्रसाधन उसके साथ आ गए | जल्दी जल्दी पानी पीकर अपनी प्यास मिटाई तथा साधु बनने में जुट गया।

  क्रमशः


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